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Monday, March 23, 2020

हर ।०० साल में ही दुनिया मे एक नई महामारी का असर क्यो?

 हर ।०० साल में ही दुनिया मे एक नई  महामारी का असर क्यों?

क्या आपको पता है। कि। कोरोना जैसी महामारी पिछले प्रत्येक सौ सालो में होती आ रही है अगर नही तो चलिए जानते है।


साल 1720 की प्लेक महामारी-प्राचीन काल में किसी भी महामारी को प्लेग कहते थे। यह रोग कितना पुराना है इसका अंदाज इससे किया जा सकता है कि एफीरस
के रूफुस ने, जो ट्रॉजन युग का चिकित्सक था, "प्लेग के ब्यूबों" का जिक्र किया है सन् 1500 से 1720 तक विश्वव्यापी महामारियाँ (epidemics) फैलीं।


भारत में प्लेगदित करें




  1. भारत में प्लेग - एक पुरान कहावत थी कि प्लेग सिंधु नद नहीं पार कर सकता। पर 19वीं शताब्दी में प्लेग ने भारत पर भी आक्रमण किया। सन् 1815 में तीन वर्ष के अकाल के बाद गुजरात के कच्छ और काठियावाड़ में इसने डेरा डाला, अगले वर्ष हैदराबाद (सिंध) और अहमदाबाद पर चढ़ाई की, सन् 1836 में पाली (मारवाड़) से चलकर यह मेवाड़ पहुँचा, पर रेगिस्तान की तप्त बालू में अधिक चल न पाया। सन् 1823 में केदारनाथ (गढ़वाल) में, सन् 1834 से 1836 तक उत्तरी भारत के अन्य स्थलों पर आक्रमण हुए और सन् 1849 में यह दक्षिण की ओर बढ़ा। सन् 1853 में एक जाँच कमीशन नियुक्त हुआ। सन् 1876 में एक और आक्रमण हुआ और तब सन् 1898 से अगले 20 वर्षों तक इसने बंबई और बंगाल को हिला डाला।
साल 1820 की कोलरा-

150 साल पहले भी भारत पर एक वायरस का टूटा था कहर, चली गई थीं 1 करोड़ लोगों की जान

इस महामारी का दौर भारत में 1820 से 1950 तक चला था। इस दौरान भारत में करीब सवा करोड़ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।ये महामारी शुरू हुई। इसने सबसे पहले चीन के अंदरूनी इलाकों में हमला बोला और फिर हांगकांग में दाखिल हुआ।

- उस दौर में इस महामारी को मॉडर्न प्लेग का नाम दिया गया। ये चीन के सिल्क रूट के रास्ते दुनिया के बाकी हिस्सों में फैली थी।
- इन्फेक्टेड चूहे ये बीमारी लेकर शिप तक पहुंचे और जहां-जहां भी शिप गए और डॉक्स पर रुके, ये बीमारी भी वहां चली गई। चीन से ही ये बीमारी भारत में फैली। भारत में इसकी शुरुआत 1889 में हुई। इस ने चीन से ज्यादा कहर भारत में मचाया था।
- इसने चीन और भारत में मिलाकर सवा करोड़ से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी। यूके की डिफेंस इवेल्युएशन एंड रिसर्च एजेंसी की रिपोर्ट मानें तो अकेले भारत में ही करीब 1 करोड़ मौतें हुईं थी।
- वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, प्लेग के वायरस 1959 तक एक्टिव रहे। हालांकि, इसके चलते होने वाली मौत के आंकड़े आखिरी के साल में गिरकर साल में प्रति वर्ष 200 पहुंचे गए थे।
- ये पोर्ट सिटी हांगकांग के जरिए ब्रिटिश भारत में दाखिल हुआ था। इसका असर सबसे ज्यादा मुंबई, पुणे, कोलकाता और कराची जैसी पोर्ट सिटीज में ही दिखा था। यहां कई समुदाय तो पूरी तरह खत्म हो गए।
इंसान को ऐसे बनाया शिकार
- प्लेग का बैक्टीरिया चूहों के जरिए फैलता था। अगर इसका तुरंत इलाज शुरू नहीं होता, तो ये इंसान को 24 घंटों के अंदर खत्म कर देता। जैसे ही इसका इन्फेक्शन लंग्स में पहुंचता, वैसे ही ये मरीज के कफ के जरिए पूरे वातावरण में फैल जाता।


साल1920 मे फ्लू-

मानव इतिहास की सबसे भीषण महामारी स्पेनिश फ्लू से कोरोना तक, यह सीख सकते हैं हम

       जब दुनिया 1918 में प्रथम विश्व युद्ध की वैश्विक विभीषिका से उबरने का प्रयास कर रही थी, ठीक उसी वक्त स्पेनिश फ्लू ने दस्तक दी थी। प्रथम विश्व युद्ध में जितने लोग मारे गए, स्पेनिश फ्लू ने उससे दो गुना लोगों को लील लिया था। उस दौरान करीब 5 करोड़ लोग मारे गए थे। यह मानव इतिहास की सबसे भीषण महामारियों में से एक थी। स्पेनिश फ्लू से कोविड-19 (कोरोना) तक करीब एक सदी बीत चुकी है, लेकिन बड़ा सवाल है कि इस दौरान हमने क्या सीखा?
इस तरह शुरू हुआ
यह माना जाता है कि स्पेनिश फ्लू पश्चिमी मोर्चे पर सैनिकों के तंग और भीड़ भरे ट्रेनिंग कैंपों में फैला। विशेष रूप से फ्रांस के साथ लगती सीमाओं पर स्थित खाइयों में प्रदूषित वातावरण ने इसके फैलने में मदद की। नवंबर 1918 में जब युद्ध समाप्त हुआ और सैनिक घर लौटने लगे तो वायरस उनके साथ आया। माना जाता है कि इसके प्रकोप के चलते 5 से 10 करोड़ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

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